शिवराज और हेमंत को झारखंड सौंपने की क्या है भाजपा की मंशा,कौन होगा “कट टू साइज”

रांची ब्यूरो(झारखंड)।भाजपा ने झारखंड विधानसभा चुनाव को गंभीरता से लिया है।प्रदेश प्रभारी को हटाकर बता दिया है कि उसकी मंशा क्या है।अन्य प्रदेशों की तुलना में झारखंड पर अधिक फोकस किया गया है।झारखंड के संथाल परगना में चुनाव समीक्षा बैठक में चल रहे हंगामे के बीच आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान और हेमंत विश्व शर्मा को झारखंड का प्रभारी और सह प्रभारी बनाया है।शिवराज सिंह चौहान की जहां मजबूत संगठन कर्ता के रूप में छवि है,तो हेमंत विश्व शर्मा भाजपा के फायर ब्रांड नेता माने जाते हैं।यह अलग बात है कि वह पहले कांग्रेसी थे, लेकिन अब भाजपाई हो गए हैं।झारखंड में भाजपा 2024 में 2019 का प्रदर्शन दोहराने में असफल रही।परिवर्तन का यही सबसे बड़ा कारण है।इस बार भाजपा को आठ और सहयोगी आजसू को एक सीट मिली है।2019 में भाजपा ने अकेले 11 और आजसू ने एक सीट जीती थी। 2024 में गठबंधन को 5 सीट मिली है।झारखंड में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं।जिन राज्यों में चुनाव होने हैं,वहां भाजपा गंभीर हो गई है।लेकिन झारखंड में सबसे अधिक फोकस किया गया है। मतलब साफ है कि भाजपा पूरी कोशिश करेगी कि झारखंड में वह फिर से काबिज हो और यह गठबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। 81विधानसभा क्षेत्र वाले झारखंड में दो बड़े नेताओं को दायित्व सौंप कर भाजपा ने एक बड़ा और कड़ा संदेश देने की कोशिश की है।टिकट के बंटवारे में भी अब प्रभारी और सह प्रभारी की ही चलेगी,इसकी उम्मीद की जा सकती है। झारखंड में भाजपा को अब यह दोनों नेता अपने ढंग से चलाएंगे।वैसे लोकसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को फ्री हैंड मिला था।अर्जुन मुंडा केंद्र में मंत्री थे,तो पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ओडिशा के राज्यपाल बनाकर भेज दिए गए थे।अब तो अर्जुन मुंडा चुनाव हार गए हैं।चुनाव के लिए बड़े नेताओं को जिम्मेवारी दी गई है।झारखंड में विधानसभा चुनाव नवंबर या दिसंबर में होने की उम्मीद है। 2024 लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। पार्टी ने सभी पांचो आदिवासी सीट गवा दी है। विधानसभा के लिए 28 सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित है। 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। 44 ही सामान्य सीट हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कुल 79 सीटों पर प्रत्याशी उतारे,पर मात्र 25 सीट ही जीत पाई थी। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों में से मात्र दो पर ही भाजपा को जीत मिली थी।इस वजह से बीजेपी झारखंड में अपदस्थ हो गई।हालांकि 2019 में आजसू के साथ गठबंधन टूटना भी एक बड़ा कारण बना था।आजसू अलग चुनाव लड़ रही थी,जबकि भाजपा अलग चुनाव लड़ी थी।लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव में संभावना व्यक्त की जा रही है कि दोनों का गठबंधन इंटैक्ट रहेगा।भाजपा ने दो बड़े नेताओं को प्रभारी और सह प्रभारी बनाकर एक बड़ा संदेश दिया है।इधर,इंडिया ब्लॉक भी मिलकर ही चुनाव लड़ेगा।यह अलग बात है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के बड़े चेहरे हेमंत सोरेन फिलहाल जेल में है।चुनाव तक बाहर आएंगे अथवा नहीं,यह भविष्य के गर्भ में है।लेकिन लोकसभा चुनाव में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने जिस तरह मोर्चा संभाला,उसकी सराहना हो रही है।घर से निकली घरेलू महिला झारखंड की राजनीति में ध्रुव तारा की तरह छा गई।इस बीच उन्होंने गांडेय विधानसभा से उपचुनाव भी जीत लिया। यह बात तो तय है कि भाजपा ने दो बड़े नेताओं को प्रभारी और सह प्रभारी बनाकर एक बड़ा संदेश दिया है।यह संदेश झारखंड के भाजपा नेताओं के लिए भी है।यह बात भी तय है कि टिकट के बंटवारे में इन्हीं दो नेताओं की चल सकती है।