देश के आम आदमी की चिंता कौन करेगा?
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आवारा पशुओं के कारण देश में दुर्घटनाएं बढ रही हैं।इन दुर्टनाओं में बड़ी तादाद में वाहन चालक या पैदल मर रहे हैं।मरने से कई गुना ज्यादा घायल हो रहे हैं किंतु किसी को इनकी चिंता नही।चिंता है तो सड़कों और गली में घूमने वाले आवारा पशुओं की।जब भी सड़क के इन पशुओं के विरूद्ध कार्रवाई की बात होती है,तो इन पशुओं के कल्याण में लगे संगठन विरोध में उतर आते हैं।वे सड़क के पशुओं की बात करते हैं।उनकी चिंता करते हैं।इनसे टकराकर मरने और घायल होने वालों की चिंता किसी को नहीं।आखिर सड़क पर चलने वाले पैदल या वाहन चालक की सुरक्षा और उसके अधिकार की भी कौन करेगा?उनकी भी तो बात होनी चाहिए।उनकी सुरक्षाकी चिंता भी की जान चाहिए।उनकी हिफाजत की भी तो चिंता की जानी चाहिए।दो साल पुरानी सरकारी जानकारी के अनुसार देश में 2.03 करोड़ लावारिस पशु हैं।इनके हमले से हर दिन तीन व्यक्तियों की मौत होती है। 3 साल में 38,00 लोगों ने गंवाई। देश में आवारा पशुओं के हमलों से रोजाना होने वाली मौतों को लेकर केंद्र सरकार ने फरवरी में एक रिपोर्ट तैयार की।साल 2019 की गणना के हिसाब से देश में आवारा पशुओं की संख्या 2.03 करोड़ आंकी गई है।देश के महानगरों में सड़क दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण आवारा कुत्ते,गाय और चूहे जैसे जानवर हैं।यह बात अग्रणी टेक-फर्स्ट बीमा प्रदाता कंपनी एको की ‘एको एक्सीडेंट इंडेक्स 2022’ रिपोर्ट में सामने आई।रिपोर्ट के अनुसार,देश में सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण जानवर थे,खासकर चेन्नई में जानवरों के कारण सबसे अधिक तीन प्रतिशत से ज्यादा दुर्घटनाएं दर्ज हुई हैं।इसमें कहा गया है कि दिल्ली और बेंगलुरु में जानवरों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या दो प्रतिशत थी।देश के महानगरों में जानवरों के कारण होने वाले दुर्घटनाओं में कुत्तों के कारण 58.4 प्रतिशत तथा इसके बाद 25.4 प्रतिशत दुर्घटनाएं गायों के कारण हुईं।रिपोर्ट के अनुसार, ‘आश्चर्यजनक बात यह है कि चूहों के कारण 11.6 प्रतिशत दुर्घटनाएं हुईं।कंपनी के अनुसार,इस दुर्घटना सूचकांक में बेंगलुरु,चेन्नई,दिल्ली,हैदराबाद,और मुंबई सहित मुख्य महानगरों में हुई दुर्घटनाओं का विवरण दिया गया है।ये कागजी आंकड़े हैं।ये महानगरों के हालात हैं।गांव में इन दुर्घटनाओं में मौत और घायलों का आंकड़ा और भी कई गुना ज्यादा होगा।अभी देश की प्रमुख चाय कंपनियों में से एक वाघ बकरी चाय के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई का निधन हो गया है।मीडिया खबरों के मुताबिक 49 साल के पराग पिछले हफ्ते अहमदाबाद में मॉर्निंग वॉक पर निकले थे।इस दौरान आवारा कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया।खुद को बचाने में वह फिसलकर गिर गए और उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था।उनका अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था।ये बड़े आदमी थे,इसलिए खबरों में आ गए, गांव देहात में तो कोई इस और ध्यान भी नही देता।हाल में उत्तर प्रदेश के मथुरा में एक बच्चे को गाय ने हमला करके घायल कर दिया।उत्तर प्रदेश के पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह भी मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में चार लाख से ज्यादा आवारा पशु हैं,जिन्हें अभी गौशाला भेजना बाकी है।हालाकि गौशालाओं में पहले ही दो लाख से ज्यादा गौंवश मौजूद है।हरियाणा में सड़कों पर घूम रहे गोवंश के कारण रूप में हर माह 10 लोग जान गंवा रहे हैं।भारत सरकार के स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय ने पिछले साल संसद में हुए एक सवाल का जवाब देते हुए बताया था कि 2019,2020, 2021और 2022 में देश में लोगों पर कुत्तों के कुल कितने हमले हुए हैं।इस जवाब के अनुसार,साल 2019 में 72 लाख 77 हजार 523 कुत्तों के हमले रिपोर्ट हुए।वहीं साल 2020 में कुल 46 लाख 33 हजार 493 कुत्तों के हमलों रिपोर्ट हुए,जबकि साल 2021 में कुल 1701133 कुत्तों के काटने के मामले रिपोर्ट हुए।वहीं साल 2022,जुलाई तक भारतीय लोगों पर हुए कुत्तों के हमले की कुल संख्या स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 14 लाख 50 हजार 666 थी। इन हमलों में कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है।ये हमले आवारा और पालतू दोनों कुत्तों के हैं।इसके साथ ही इन हमलों के शिकार,बच्चे,बुजुर्ग और जवान तीनों हुए हैं।आवारा कुत्तों के काटने से आपको रेबीज नाम की बीमारी हो जाती है।ये बीमारी इतनी घातक होती है कि अगर समय पर इसका इलाज नहीं कराया गया तो मरीज की मौत भी हो सकती है।साल 2018 में मेडिकल जर्नल लैंसेट में छापी इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में हर साल 20 हज़ार लोग रेबीज के कारण मरते हैं. इनमें से ज्यादातर रेबीज के मामले कुत्तों द्वारा इंसानों तक पहुंचे हैं।ऐसा नहीं है कि हर कुत्ते के काटने से आपको रेबीज हो सकता है,लेकिन ज्यादातर आवारा कुत्तों के काटने से रेबीज का खतरा रहता है।कुत्तों के इन हमलों के सबसे ज्यादा शिकार छोटे बच्चे और जवान होते हैं।दिल्ली और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में तो हिंदुओं के गाय प्रेम का पशुपालक अनुचित लाभ उठा रहे हैं।वे सवेरे दूध निकालकर अपने पालतू गाय को चरने के लिए खुला छोड़ देते हैं।ये गाय सड़क और गलियों में घूमकर अपना पेट भरते हैं।कई बार नागरिक इनके हमले के शिकार हो जाते हैं।पालतू कुत्ते भी मालिकों की लापरवाही के कारण लोगों पर हमले करते रहते हैं।दो साल पहले केंद्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि आवारा पशुओं जिनमें गौवंश और विशेष तौर पर कुत्ते शामिल हैं,उन्हें पकड़ कर पशु चिकित्सक द्वारा पशु पालन विभाग के अधिकारियों की देखरेख में मेडिकल जांच कराने और बीमार होने पर इलाज कराने को कहा गया है। उन्हें अलग-अलग संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिए अनिवार्य वैक्सीनेशन कराने के लिए भी कहा गया है। वैक्सीनेशन पशुओं के माध्यम से इंसानों को होने वाले संक्रमण से भी बचाएगा।राज्यों को यह भी कहा गया है कि वह ऐसे लोगों की पहचान करें,जो बीमार या काम लायक न रहने पर अपने पशुओं को बेसहारा छोड़ देते हैं।ऐसे लोगों पर कार्रवाई की जाए।कानून के तहत ऐसे मामलों में 6 महीने से लेकर 1 साल तक की सजा का प्रावधान है।राज्यों को पशु हेल्पलाइन बनाने के निर्देशराज्यों को शिकायत तंत्र और पशु हेल्पलाइन बनाने के निर्देश दिए गए हैं।साथ ही कहा गया कि कोई आवारा पशु जैसे कुत्ता पागल हो गया है तो उससे रेबीज की मात्रा अधिक मिलती है,तो उसे तब तक अलग रखा जाए,जब तक उसकी मौत न हो जाए। आवारा कुत्ते को संक्रामक बीमारी है और एक पशु से दूसरे पशु या इंसानों में होने का खतरा है और इलाज संभव नहीं है,तो ऐसे संक्रमित जानवरों को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म करने के भी निर्देश दिए गए हैं।केंद्र के ये निर्देश,निर्देश ही बन कर रह गए।किसी को इनके क्रियान्वयन का ध्यान नही आया।आवारा गौवंश के लिए उत्तर प्रदेश में सरकारी स्तर पर गौशालाएं खोली गई हैं।ये गौशालाएं नगर निगम , नगरपालिका और नगर पंचायत स्तर पर खुली हैं।आवारा गौवंश पकड़कर इनमें रखा जाता है।इन गौशालाओं की जगह पशुशाला खुलनी चाहिएं।इनमें गाय, बैल,गधा,घोड़ा कुत्ता,बिल्ली जैसे आवारा पशु पकड़कर रखे जांए।देश की नगर,गांव और सड़कें आवारा पशुओं से बिल्कुल मुक्त होनी चाहिए। ऐसा होगा तो आम आदमी और वाहन चालक गली, मुहल्लों,नगरों और सड़कों पर सुरक्षित होंगे। अशोक मधुप
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)