बिहार : कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कहा-मंडी सिस्टम शुरू होना चाहिए और पैक्स का एकाधिकार खत्म होना चाहिए
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ब्यूरो,पटना:कृषि मंत्री सुधाकर सिंह अक्सर अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहे हैं।अब उन्होंने मंडी कानून फिर से लागू करने के लिए विभाग को पीत पत्र लिखा है।बता दें कि बिहार सरकार ने 2006 में इसे खत्म कर दिया था।सुधाकर सिंह ने मंत्री पद संभालने के बाद दो मांगें रखी थीं।पहला यह कि मंडी को फिर से शुरू किया जाए और दूसरा किसानों को अनाज के लिए प्रोक्योरमेंट के लिए मल्टीपल एजेंसी का ऑप्शन दिया जाए।उन्होंने कहा-पैक्स के अलावा अन्य एजेंसियों से भी अनाज बेचने का ऑप्शन किसानों को देने से भ्रष्टाचार खत्म होगा। सुधाकर सिंह कहा कि बिहार में जब मंडियां खत्म हुईं धान, गेहूं,मक्का का भाव गिरता चला गया।घाटे का कारोबार बढ़ता गया।सरकार के पास कोई मैकेनिज्म नहीं है कि जिससे जाना जाए कि हो क्या रहा है,जबकि सरकार का यह दायित्व है कि वह इसका पता लगाए कि किसानों को उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा है तो क्यों नहीं मिल रहा है।यह प्राइमरी ड्यूटी है।सरकार के मंत्री या अफसर इसे कैसे जानेंगे। कोई बेसलाइन डेटा होना चाहिए।धीरे-धीरे आज यह हालत हो गई है कि किसानों को अनाज की कीमत मिनिमम से बहुत कम मिल रहा है।रोजगार का संकट भी पैदा हुआ।सुधाकर सिंह के अनुसार-इसको ऐसे समझिए कि पटना में अगर किसी घर में शादी या कोई बड़ा आयोजन हो और सब्जी खरीदनी हो ज्यादा मात्रा में तो मंडी में जाना होगा।एक -दो किलो तो ठेले वाले से भी ले लेंगे।मंडी में कई बार ऑर्डर भी करना पड़ता है कि शाम तक हमें मिल जाए।पूरे एग्रीकल्चर में प्रोड्यूशर, एग्रीगेटर,मंडी,मंडी से प्रोसेसर और फिर कंज्यूमर के पास चीजें जाती हैं तो मंडी से किसान और कंज्यूमर को भी फायदा होता है। लेकिन मंडी के खत्म होने पर किसी को फायदा नहीं हुआ। इससे प्रोसेसिंग यूनिट बिहार में ठप होने लगी।ट्रेडर कच्चा माल लेकर बाहर जाने लगे। सुधाकर सिंह कहते हैं-ट्रेडर तो दो परसेंट का फायदा लेकर बिहार से निकल गया लेकिन बिहार को इसका कोई फायदा नहीं मिला, रोजगार का सृजन बिहार में नहीं हुआ।यह समझना होगा कि मंडी से बड़ी जगह कोई नहीं है रोजगार देने के लिए। प्रदेश भर में मंडियों को चलाने के लिए 10 हजार सरकारी नौकरियां तो सीधे जेनरेट हो सकती है।स्थिति यह है कि मंडी नहीं रहने के कारण बिहार से काफी मात्रा में अनाज का रॉ मेटेरियल बिहार से बाहर जा रहा है और वहां से अनाज तैयार होकर बिहार में आ रहा है। बिहार को कई स्तर पर बड़ा नुकसान रहा है।सबसे बड़ी बात कि किसानों में काफी हताशा और निराशा है। बिहार में प्रोसेसिंग यूनिटें मर गईं हैं।सुधाकर सिंह कहते हैं कि दूसरा सवाल है एक एजेंसी की मोनोपॉली खत्म कर मल्टीपल एजेंसी को प्रोक्योरमेंट सिस्टम से जोड़ना।हरियाणा,पंजाब में किसान धान कटता है,ट्रैक्टर पर लादा जाता है,मंडी में जाकर रख देता है। इसे ऑक्शन प्लेटफॉर्म करते हैं।वहीं पर अनाज की एफसीआई,नेफेड,हाफेट, पनसब आदि जैसी एजेंसियां आती हैं और मंडी इंस्पेक्टर के सामने बोली लगती है।धान या अन्य फसल की क्वालिटी के अनुसार बोली लगती है।जिस एजेंसी ने अधिकतम बोली लगी दी, उसके नाम से पर्ची कट जाती है।किसान को तुरंत चेक द्वारा पेमेंट मिल जाता है। किसान की चिंता खत्म,वे दूसरे काम में लग जाते हैं।बिहार में भी किसानों के पास इतनी जगह कहां है अनाज रखने के लिए।मंडी उनके लिए सेफ है।मेरा कहना है कि मल्टीपल एजेंसी को किसानों के अनाज लेने की छूट होनी चाहिए।सरकार तो कहती है कि वह साढ़े उन्नीस सौ रुपए क्विंटल अनाज के दर से अकाउंट में रुपए दे रही है लेकिन यह जानना चाहिए कि किसानों को हाथ में सच में कितने पैसे आ रहे हैं? किसान हमें बताते हैं कि बिचौलियों की वजह से उनके पास साढ़े सोलह सौ रुपए ही आ रहे हैं।किसानों की बातों में सच्चाई है कि तो यह बड़े गोलमाल का मामला है करोंड़ों का।सुधाकर सिंह कहते हैं कि मैं दरभंगा गया था।वहां किसानों ने कहा कि न धान,न मक्का का दाम मिला और न ही फर्टिलाइजर मिला।दो हजार किसानों में से दो के भी हाथ नहीं उठे कि वह कृषि विभाग के काम से संतुष्ट हैं!