अद्भुत है झुंझुनू स्थित श्री रानीसती दादी का मंदिर
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जयपुर ब्यूरो।राजस्थान के झुंझुनू जिला स्थित रानीसती दादी का मंदिर सम्मान,ममता और स्त्री शक्ति का प्रतीक है।यहां हर वर्ष भादव अमावस्या और मंगषीर नवमी को भव्य मेला लगता है।वैसे तक साल के 12 महीने ही देश के कोने-कोने से दादी भक्त दर्शन करने झुंझुनू मंदिर पहुंचे हैं,लेकिन भादव अमावस्या व मंगषीर नवमी को झुंझुनू पहुंचने वाले दादी भक्तों की संख्या लाखों में होती है। रानीसती मंदिर उस नारायणी के पतिव्रता होने का प्रतीक है, जिन्होंने अपने चुड़े से चिता की अग्नि प्रज्ज्वलित की थी।दादी भक्तों की आपार आस्था का रानीसती का यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना है। यह मंदिर भारत के सबसे अमीर मंदिरों में एक है।इतिहास खंगालने पर ज्ञात होता है कि नारायणी देवी द्वापर युग के महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण के मित्र अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा थी,जब अभिमन्यु महाभारत युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए तब उत्तरा ने श्रीकृष्ण से अपने पति के साथ जाने की इजाजत मांगी और श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हारे गर्भ में पल रहा पुत्र कलयुग का राजा परीक्षित होगा,इसलिए तुम्हारी यह इच्छा अभी नहीं,बल्कि कलिकाल में पूर्ण होगी। कालक्रम में नारायणी का जन्म हरियाणा के अग्रवाल परिवार के बेहद संपन्न धनकुबेर सेठ श्री गुरुस्मालजी गोयल के घर में सावंत 1338 कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन शुभ मंगलवार रात्रि 12 बजे के बाद हरियाणा की प्राचीन राजधानी महम नगर में हुआ था।सेठ गुरुस्माल महाराजा अग्रसेनजी के सुपुत्र श्री गोंदालालजी के वंशज थे और इनका गोत्र गोयल था,इनके पिताजी इतने प्रसिद्ध थे कि उस समय उनकी मान्यता और सम्मान दिल्ली के राज दरबार में भी था तो सेठ गुरुस्मालजी के घर एक बड़ी ही प्यारी कन्या ने जन्म लिया, जिसके चेहरे पर एक अजीब सा तेज था।सेठजी का घर खुशियों से भर गया।सभी ने प्यार से इस कन्या का नाम नारायणी बाई रखा।बचपन से ही यह कन्या बड़ी विचित्र थी।यह साधारण बच्चों वाले खेल नहीं खेलती थी। बचपन से ही यह धार्मिक खेल अपनी सखियों के साथ खेला करती थी।धार्मिक कथाओं में यह कन्या विशेष रुचि लेती थी। नारायणी समय के साथ धीरे-धीरे बड़ी होने लगी।बड़ी होने पर उनके पिता ने नारायणी को धार्मिक शिक्षा, अस्त्र-शस्त्र,घुड़सवारी आदि की शिक्षा भी दिलाई और नारायणी ने इन सब चीजों में गजब की महारत और प्रवीणता हासिल की।उस समय हरियाणा में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में भी नारायणी के मुकाबले दूसरा कोई निशानेबाज नहीं था।नारायणी बचपन से ही चमत्कारी थी।वह बचपन से ही अपने चमत्कार दिखाने लगी।उस समय नगर में बच्चे खाने वाली एक औरत मेमनगर में आया करती थी,जिसे डाकन भी कह सकते हैं।वह डाकन नगर के कई बच्चों को मारकर खा चुकी थी। बाल्यावस्था में ही नारायणी की सुंदरता के चर्चे पूरे नगर में थे। नारायणी की ख्याति सुनकर एक दिन उसने सोचा आज इसे ही भोजन बनाया जाए,लेकिन नारायणी का तेज देखकर डाकन नारायणी पर हमला नहीं कर पाई।इसके बाद वह राक्षसी नारायणी की सहेली को उठाकर ले जाने लगी।तब नारायणी ने उनका पीछा किया और नारायणी को अपनी ओर आता देख कर वह राक्षसी बेहोश होकर गिर पड़ी।डाकन सहेली को मार चुकी थी, लेकिन नारायणी ने अपने चमत्कार से उसे फिर से जीवित कर दिया।समय के साथ नारायणी का विवाह अग्रवाल कुल शिरोमणि हिसार नगर के मुख्य दीवान धन्य सेठ के सुपुत्र तनधनदासजी के साथ 1341 मंगलवार के दिन बड़ी ही धूमधाम के साथ किया गया। नारायणी के पिता ने जी भरकर उसे दहेज दिया दहेज में हाथी, घोड़े,ऊंट,सैकड़ों छकड़े भरकर समान इतना सम्मान दिया कि जिन्हें तोला जाना भी संभव नहीं था,लेकिन इन सब में एक खास चीज थी और वह सबसे विशेष वस्तु श्याम करण घोड़ी।उस काल में उत्तर भारत में केवल एक मात्र श्याम करण घोड़ी उन्हीं के पास थी,जो उन्होंने नारायणी के दहेज में दे दी।विवाह के पश्चात तनधनदासजी संध्या काल के समय अपनी ससुराल वाली घोड़ी पर सैर करने के लिए हिसार की गलियों में घूमा करते थे।एक दिन की बात है नवाब के पुत्र यानी कि शहजादे को उसके दोस्तों ने भड़का दिया कि जैसे घोड़ी दीवान के लड़के के पास है,ऐसी तेरे राज्य में किसी और के पास नहीं है और यह घोड़ी तो तेरे पास होनी चाहिए।शहजादा तुरंत नवाब साहब के पास गया और बोला दीवान के पास जो घोड़ी है वह मुझे चाहिए शहजादा जिद करने लगा नवाब ने दीवान साहब को बुलाया और उनसे घोड़ी मांगी। दीवानजी ने कहा यह मेरी नहीं है मेरे लड़के को ससुराल से मिली है।इसके बाद नवाब ने अपनी सेना द्वारा तनधनदासजी की हत्या करवा दी।जिसके बाद नारायणी ने दुर्गा का रूप धारण कर लिया और अपने तेज से वहां कुआं बनाया और चिता सजा दी।कुआं में स्नान के बाद उन्होंने अपने चुड़े से चिता की अग्नि प्रज्वलित की और उसमें बैठकर खुद को सती बन गई।सती की स्मृति में बना यह मंदिर राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित है।यह झुंझुनू शहर का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। बाहर से देखने में यह किसी राज महल सा दिखाई देता है। पूरा मंदिर संगमरमर से निर्मित है और इसकी बाहरी दीवारों पर शानदार रंगीन चित्रकारी की गई है।इस भव्य मंदिर में दक्षिण भारतीय शैली की एक झलक दिखाई देती।यह मंदिर बहुत ही बड़े परिसर में फैला हुआ है और बहुत ही खूबसूरत है।